प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को 68वां जन्मदिन का जश्न मनाने जा रहे हैं। इसके लिए वह अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी जाकर जन्मदिन मनाएंगे। साथ ही दो दिनों तक काशी में रहेंगे। इस मौके पर वाराणसी को सजाया गया है। जन्मदिन को खास बनाने के लिए खूब तैयारियां की गई है। इस दौरान वह बीएचयू व कई खास जगहों पर जाकर सभा को संबोधित करेंगे। साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर जा सकते हैं।
17 सितंबर को दोपहर वह जन्मदिन के मौके पर बनारस पहुंचेंगे। पीएम मोदी वाराणसी हवाईअड्डे से हेलीकॉप्टर के जरिए डीरेका जाएंगे। वहां से वह काशी विद्यापीठ ब्लॉक के नरउर पहुचंगे और प्राथमिक स्कूल के बच्चों के बीच केक काटकर जन्मदिन मनाएंगे। पीएम मोदी मंगलवार को 500 करोड़ रूपये मूल्य की कई विकास परियोजनाओं की आधारशिला रखेंगे।
संघ की सदस्यता
उनके परिजनों का कहना है कि बचपन से ही उनका संघ की तरफ खासा लगाव रहा। वैसे भी गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी था। तभी वे 1967 यानी 17 साल की उम्र में अहमदाबाद पहुंचे। इसी बीच उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली। इसके बाद 1974 में नव निर्माण आंदोलन में हिस्सा लेकर अपने मेहनत का परिचय दिया और उनको जल्द ही बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई। इस तरह सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई वर्षों तक संघ के प्रचारक रहे।
इंदिरा गांधी की खिलाफत
1975 से लेकर 1977 तक का भारत का काला दिन यानी इंदिरा सरकार द्वारा घोषित आपातकाल, इस दौरान नरेंद्र मोदी भाजपा में शामिल नहीं हुए थे लेकिन उन्होंने आपातकाल के विरोध में हिस्सा लिया। साथ ही जमकर विरोध किया। इस दौरान नरेंद्र मोदी अंडरग्राउंड रहे और उन्होंने गुजराती में एक चर्चित किताब संघर्ष मा गुजरात (गुजरात इन इमर्जेंसी) लिखी जो कि विवादों में रही।
भाजपा में ऐसे मिली एंट्री
इसके बाद नरेंद्र मोदी का चेहरा खुलकर सामने आया। भारतीय जनता पार्टी ने उभरते युवा नेता को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। खबरों की मानें तो 1985 में वे भाजपा ज्वॉइन कर लिए। बीजेपी में आते ही उन्होंने राष्ट्रवादी और हिंदूत्व का मुद्दा उठाया। गुजरात में पार्टी के कई बड़े पद पर इन्होंने काम किया। इनके मेहनत का ही नतीजा रहा कि वे गुजरात जैसे राज्य का 12 सालों तक मुख्यमंत्री बने रहे।
मोदी कार्यकाल और हादसे…
गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में कई बड़ी घटनाएं भी घटी लेकिन इनकी सूझबूझ ने सबकुछ ठीकठाक रखा और सत्ता पर आंच तक नहीं आई। जैसे कि मोदी के सत्ता संभालने के लगभग पांच महीने बाद ही गोधरा कांड हुआ जिसमें कई हिंदू कारसेवक मारे गए। इसके ठीक बाद फरवरी 2002 में ही गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ दंगे भड़क उठे।