स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekananda Jayanti 2019) का आज 156वां जन्मदिवस है। स्वामी विवेकानंद की जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) मनाया जाता है। लेकिन युवाओं का यह देश शैक्षिक,समाजिक व सास्कृतिक रूप से पिछड़ रहा है। इसका मुख्य कारण भारतीय राजनीति पूर्ण रूप से जिम्मेदार है, राजनीति के कारण शिक्षा और विकास के मायने बदल गए। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि भारतीय राजनीति तभी सफल हो सकती है जब सुशिक्षा, भोजन और रहने की अच्छी सुविधाएं होगी।
देशभक्ति और राष्ट्रवाद की जो मुहीम स्वामी विवेकानन्द ने युवाओं के लिए चलाई आज वह क्रिकेट के मैच में ही दिखाई देती है या फिर राजनीतिक दलों के उकसावे में आकर आम लोग की भावनाओं में। स्वामी विवेकानन्द ने भारत की जिस सांस्कृतिक परम्परा का विचार और उसका विस्तार विश्व भर में फैलाया आज वही भारत अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलकर पश्चिमी सभ्यता को अपने पर हावी कर रहा है।
स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) आधुनिक भारत में युवाओं के प्रेरणस्रोत हैं। उनके द्वारा दिए गए विचार आज-युवाओं के घरों में पोस्टर और वॉलपेपर के रूप में दिखाई देते हैं। उनके विचार युवाओं को शक्ति और मनोबल देते हैं। स्वामी विवेकानंद का एक विचार जो यहां उद्धत कर रहे हैं, ‘सब शक्ति तुम में है,तुम कुछ भी और सबकुछ कर सकते हो, इसमें विश्वास करो, यह मत सोचो की तुम कमजोर हो,खड़े हो और बताओं तुम में क्षमता या ईश्वरिय है।’
खैर यहां, हम आपको बताएंगे स्वामी विवेकानंद के जीवन का अहम कदम, जिसने उन्हें विश्व के पटल पर लाकर खड़ा कर दिया और एक अलग पहचान दी। उनसके बाद से उन्हें विश्व गुरू और महाज्ञाता के रूप में जाना जाने लगा। स्वामी विवेकानंद की ख्याति शिकागो में विश्वधर्म सम्मेलन के दौरान दिए भाषण के बाद दुनियाभर में फैल गई। उनके ज्ञान और विचारों से प्रभावित होकर लोगों ने उनका अनुसरण करना शुरू कर दिया।
राजा ने दिया शिकागो जाने का विचार
किस्सा कुछ यूं शुरू होता है। स्वामी विवेकानंद जब 25 वर्ष के थे उन्होंने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया और 1881 में रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बनकर ज्ञान लिया। इस दौरान गुरु रामकृष्ण ने स्वामी विवेकानंद को दक्षिण भारत की यात्रा करने के लिए कहा। गुरु की बात मान स्वामी विवेकानंद दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले। दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद ने मद्रास के राजा भास्कर सेतुपति के दरबार में जाकर मुलाकात की। वहां से उन्हें विश्वधर्म सम्मेलन में जाने का विचार मिला।
कन्याकुमारी के समुद्र में लगाया ध्यान
स्वामी विवेकानंद इसके बाद देश के दक्षिण भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी पहुंचे। यहां वह समुद्र के भीतर भारत की अंतिम चट्टान पर तैरकर गए। वहां कई दिनों तक ध्यान लगाने और चिंतन-मनन करने बाद वापस गुरु रामकृष्ण के पास पहुंचे। आपको बता दें कि यह वही चट्टान है, जहां आज विवेकानंद रॉक मेमोरियल बनाया गया है। यहां आज जाने के लिए वोट का उपयोग किया जाता है। आज यहां स्वामी विवेकानंद की विशाल मूर्ति बनाई गई है। यहां एक संग्रहालय भी बनाया गया है।
स्वामी विवेकानंद के ज्ञान से प्रभावित हुए रामकृष्ण परमहंस
गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास पहुंचने के बाद स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के धर्म सम्मेलन में हिस्सा लेने की इच्छा जाहिर की। गुरू रामकृष्ण, विवेकानंद की गुणों और ज्ञान से पहले ही प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने भी हामी भर दी। स्वामी विवेकानंद पहले ही भारत की यात्रा कर चुके थें। अब उनकी विदेश यात्रा की बारी थी। स्वामी विवेकानंद 31 मई 1893 से अपनी विदेश यात्रा की शुरुआत की। वह मुंबई से जापान गए। इसके बाद वह चीन और कनाडा का दौरा किया। फिर वह अपनी मंजिल अमेरिका के शिकागो शहर में पहुंचे और अपने विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया।
यहां 11 सितंबर 1893 को दिए शिकागो भाषण के कुछ अंश
स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म (सनातन धर्म) से आता हूं, जिसने पूरे विश्व को सहनशीलता और सार्वभौमिकता का पाठ पढ़ाया है। भारतवासी सहनशीलता में विश्वास रखने के साथ-साथ दुनिया के सभी धर्म को सत्य के रूप में स्वीकार करता हूं।
स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश आता हूं जिसे धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए और परेशान लोगों को शरण दी है। हमने इजराइलियों की पवित्र स्मृतियों को संभालकर रखा है, जिनके धर्म स्थलों पर रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और उन्होंने दक्षिण भारत की शरण ली थी।
स्वामी विवेकानंद ने कहा कि संप्रादियकताएं, कट्टरताएं और इनके वंशजों ने धरती को जकड़ा हुआ है। धरती हिंसा से कई बार लाल हुई। न जानें कितनी सभ्यताओं का पत्तन हुआ है। अगर ये राक्षस नहीं होते तो मानव समाज इससे कहीं ज्यादा उन्नत होता। मुझे उम्मीद है कि विश्वधर्म सम्मेलन का शंखनाद सभी मनुष्यों की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
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