विजय माल्या को ‘किंग ऑफ गुड टाइम्स’ यूं ही नहीं कहा जाता है। उनकी जिंदगी पहले जितनी आलीशान थी, उससे कहीं ज्यादा आज है। भले ही वह भारतीय बैंकों का पैसा लेकर देश से फरार हो गए, लेकिन उनकी शानो-शौकत में कभी कोई कमी नहीं आई। तभी तो जेल जाने की बात पर भी वो वहां मौजूद सुविधाओं की जिक्र पहले करते हैं।
इस वक्त भी विजय माल्या मजे में जी रहे हैं। लंदन में खुलेआम घूमते हैं। मैच देखते हैं। लेकिन भारत सरकार, बैंक, CBI, ED या पुलिस प्रशासन, हर कोई उनकी वजह से हलकान है। सरकार उनको जेल में रखकर पैसों का हिसाब करना चाहती है, लेकिन चाह कर भी अभी तक सरकारी एजेंसियां कुछ भी नहीं कर सकी हैं।
विपक्ष में बैठी कांग्रेस मोदी सरकार पर सवाल उठा रही है। बैंक अपने पैसों की वापसी के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं। लेकिन आखिर विजय माल्या किसकी गलती का नतीजा है? ये हर कोई जानना चाहता है। इसलिए हमने इसकी गहराई से पड़ताल की, जो सच सामने आया, वो बहुत ही हैरान कर देने वाला है।
पहले एक अखबार के खुलासा को जान लेते हैं। देश छोड़ने के बाद भी माल्या के स्वीस बैंक अकाउंट में पैसा भेजा गया है। यानी कि 170 करोड़ रुपए भारत से भेजे गए हैं। अब भारत छोड़ने के बाद भी यदि इतनी बड़ी रकम भेजी जाती है और प्रशासन को कानों कान खबर नहीं लगती है तो फिर इसका मतलब क्या समझा जाए?
अब हम CBI की बात करते हैं जो कि माल्या को देश लाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। 10 जुलाई 2015 को फाइनेंशियल इरेगुलेटर एंड डायवर्सेन ऑफ फंड के लिए माल्या पर केस दर्ज किया। जिसको लेकर 10 अक्टूबर 2015 को किंगफीशर के ठिकानों पर छापेमारी की गई। सीबीआई ने बताया कि उसे पर्याप्त सबूत मिले हैं।
इसके आधार पर 16 अक्टूबर 2015 को लुक आउट नोटिस इमिग्रेशन ऑथिरीटी को भेजा। इसी मामले को लेकर 23 नवंबर को इमिग्रेशन ऑथिरीटी ने CBI को बताया कि 24 नवंबर को माल्या भारत आ रहे हैं। लेकिन CBI ने गिरफ्तार ना करके 24 नवंबर की सुबर में तत्कालीन CBI निदेशक एके शर्मा ने इमिग्रेशन ऑथिरीटी को बताया कि हमें सिर्फ उनके आने की जानकारी चाहिए, हमें गिरफ्तारी नहीं करनी है।
इसके बाद जब गिरफ्तारी नहीं हुई तो विपक्ष दबाव बनाने लगा। लेकिन पर्याप्त सबूत ना मिलने का दावा करके CBI ने गिरफ्तार नहीं किया। लेकिन 9, 10 और 11 दिसंबर 2015 को CBI ने विजय माल्या को पूछताछ के लिए बुलाया। इसके बाद फिर उसे छोड़ दिया गया।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भी लुक आउट नोटिस के बदलाव का कारण पूछा तो CBI ने बताया कि लुक आउट नोटिस गलती से जारी कर दिया गया था। हमारे पास गिरफ्तारी करने के लिए सबूत नहीं थे। इसलिए कोई ठोस कदम उठाया ना जा सका। यहां तक की बैंकों ने भी कोई शिकायत नहीं की थी।
जिन बैंकों के हजारों करोड़ विजय माल्या के पास थे। वे बैंक भी बेफिक्री से बैठे थे। CBI और सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचने के बाद भी बैंकों ने कोई शिकायत नहीं की। पर जैसे ही 5 मार्च 2016 को बैंकों ने सुप्रीम कोर्ट में विजय माल्या का पासपोर्ट जब्त करने के लिए अर्जी लगाई थी तब तक माल्या देश छोड़ कर फुर्र हो चुका था।
28 फरवरी 2016 को ही सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ने बैंकों को सलाह दिया था कि 24 घंटे के भीतर माल्या के पासपोर्ट को जब्त करने की अर्जी दे दें, लेकिन बैंकों ने इसे भी अनसुना कर दिया। बैंकों की ये कोई पहली लापरवाही का मामला नहीं है, बल्कि 2003 में बैंकों ने माल्या को करीब 7 हजार करोड़ तक का लोन दे दिया था। लेकिन इस एवज में पर्याप्त गारंटी नहीं ली। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि एक ही प्रोपर्टी पर दो-दो बैंकों ने कर्ज दिया।
जरा सोचिए कि एक आम आदमी के कागजात सही होते हैं, उससे गिरवी रखवाया जाता है, फिर भी कई बार बैंक लोन नहीं देता, लेकिन विजय माल्य के लिए बैंकों ने अपने ही नियम कानून को किनारे कर दिया। यहां तक की 2013 में किंगफीशर एयरलाइंस के लाइसेंस रद्द होने के बाद भी बैंकों ने कोई ठोस कानूनी कदम नहीं उठाया था।
अब भ्रष्टाचारियों को सबक सीखाने का दावा करने वाली मोदी सरकार के शासनकाल में ही देश को लूटने वाले कैसे बच निकले। जबकि माल्या के पल-पल की खबर CBI की ओर से PMO को दी जा रही थी। तो फिर क्या मजबूरी थी कि सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया।
हाल ही में लंदन कोर्ट के सामने माल्या ने दावा किया कि देश छोड़ने से पहले वो वित्त मंत्री अरुण जेटली से संसद के सेंटर हॉल में मिला था। इस बात को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पूनिया ने भी दावा किया। जब PMO और वित्त मंत्री को इसकी जानकारी थी तो फिर माल्या फरास कैसे हो गया।
आज भले ही कांग्रेस मोदी सरकार पर उंगली उठा रही है, लेकिन बैंकों के खजाने तो कांग्रेस के शासन काल में ही खाली हो चुके थे। माल्या को दिए गए 90 फीसद कर्ज तो कांग्रेस के समय ही दिए गए हैं। SFIO रिपोर्ट के अनुसार माल्या के मेल से पता चलता है कि 2009 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने माल्या को बैंकों से लोन दिलाने में मदद की थी। इतना ही नहीं फारूक अब्दुल्ला और शरद पवार ने भी दिल खोलकर मदद की थी।
यह मामला यहीं खत्म नहीं होता है तत्कालीन उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पेटल एयरपोर्ट टैक्स को कम किया था। अब आपने देख ही लिया कि कांग्रेस, बीजेपी ने क्या किया और सीबीआई से लेकर तमाम एजेंसियों क्या कर रही हैं? वहीं, माल्या 28 साल से ब्रिटिश नागरिक है और भारत के पैसों पर ऐशो आराम कर रहा है।