World Day Against Child Labour 2019: देश में 1 करोड़ से ज्यादा बाल मजदूर, कब आजाद होंगे ये बच्चे?

आज 'अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस' (World Day Against Child Labour 2019) है। एक बार फिर हम देश में बाल मजदूरी के आंकड़ों पर बात कर लेते हैं, लेकिन इन हालातों का जिम्मेदार आखिर है कौन?

हर साल 12 जून को बाल मजदूरी के खात्मे को लेकर यह दिन मनाया जाता है। (फोटो- ट्विटर)

हर साल 12 जून को दुनियाभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस’ (World Day Against Child Labour 2019) मनाया जाता है। दरअसल इस दिन को मनाए जाने जैसा कुछ भी नहीं है, बल्कि यह दिन तो हमें याद दिलाता है कि भले ही हम 21वीं सदी में जी रहे हों, दुनिया तरक्की के पथ पर अग्रसर हो, लेकिन देश और दुनिया से बाल मजदूरी के दानव का कभी अंत नहीं होगा। क्या आप जानते हैं कि आज दुनियाभर में 15 करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करने को मजबूर हैं। यह हम नहीं कह रहे बल्कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट कह रही है।

दुनिया के 200 से ज्यादा देशों में 15 करोड़ बाल मजदूरों का आंकड़ा तब और भी भयानक लगता है जब पता चलता है कि इनमें से 1 करोड़ से ज्यादा बाल मजदूर भारत में हैं। हैरान होने वाली बात तो यह है कि यह आंकड़ा तब मिला था जब साल 2011 में जनगणना हुई थी।

कई बाल अधिकार संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ता बताते हैं कि 2011 से लेकर आज तक हालात बिगड़ते ही आए हैं, आंकड़ों में बढ़ोतरी ही हुई है। यानी बाल मजदूरों की संख्या घटने के बजाय इसमें साल दर साल लगातार इजाफा होता ही जा रहा है।

क्या आप जानते हैं कि हर साल ह्यूमन ट्रैफिकिंग कर मासूम बच्चों को उनके परिवारों से अलग कर बाल मजदूर बना दिया जाता है। बांग्लादेश, नेपाल समेत सीमा से सटे देशों से नाबालिग बच्चों को गैरकानूनी रूप से भारत लाया जाता है।

मासूमों को या तो मजदूर बना दिया जाता है या फिर नाबालिग लड़कियों को वेश्यावृत्ति के रास्ते पर चलने को मजबूर किया जाता है। औने-पौने दामों में बच्चों की खरीद-फरोख्त की जाती है। कई बार इन मासूमों की कीमत जानवरों से भी कम होती है। बच्चों को बदतर स्थिति में रखा जाता है।

सरकारें बाल मजदूरी को खत्म करने के खूब वादे करती हैं, लेकिन इसके बावजूद बाल श्रम देश से खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। देश में बाल मजदूरी के खिलाफ कानून है। साल 2016 में इसमें बदलाव कर इसे और सख्त बनाया गया है, लेकिन फिर भी स्थिति ढाक के तीन पात ही बनी हुई है।

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी कई दशकों से बाल मजदूरी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के अनुसार, देश में करीब 7 से 8 करोड़ बच्चों को उनका हक यानी नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा नहीं मिल पा रही है।

यह बच्चे स्कूल जाने के बजाय बाल मजदूरी के जाल में फंसे हुए हैं। वह पढ़ना चाहते हैं, लेकिन मजदूरी की मजबूरी ने उनके पैरों को बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। देश में अगर सरकार, संबंधित विभाग, गैर-सरकारी संस्थाएं और पंचायती व्यवस्थाएं मिलकर काम करें तो भारत से बाल मजदूरी का अंत निश्चित है।

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राहुल सिंह :उत्तराखंड के छोटे से शहर हल्द्वानी से ताल्लुक रखता हूं। वैसे लिखने को बहुत कुछ है अपने बारे में, लेकिन यहां शब्दों की सीमा तय है। पत्रकारिता का छात्र रहा हूं। सीख रहा हूं और हमेशा सीखता रहूंगा।