हर साल 11 जुलाई दुनिया भर में विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाया जाता है। ये दिन पिछले 30 साल से मनाया जा रहा है। इंटरनेशल संगठन संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम गवर्निंग बॉडी ने 11 जुलाई 1989 से इसकी शुरुआत की। इसकी शुरुआत परिवार नियोजन, लिंग समानता, गरीबी और मातृ स्वास्थ्य और मानव अधिकारों के लिए की गई। उस वक्त दुनिया की बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित और रोकने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत की गई।
इस दिन दुनिया भर में जगहों-जगहों पर जनसंख्या को कंट्रोल (Population Control Policy)करना का सबसे बड़ा साधन यूएनडीपी ने कंडोम, कॉपर-टी, गर्भ निरोधक गोलियां और नसबंदी को बताया। विश्व के देशों ने इन साधनों को बढ़ावा दिया। नसबंदी के लिए प्रोत्साहन राशि भी दी। लेकिन भारत में जनसंख्या नियंत्रण के सबसे बड़े टूल्स का एक नेगेटिव इमेज भी बनी। जी हां, हमने हाल के वर्षों में कई छत्तीसगढ़ और झारखंड के क्षेत्रों में जबरन नसबंदी के मामले आए। जिसमें कई लोगों की मौत हो गई।
जबरन हुई गरीबों और मुसलमानों की नसबंदी
ऐसी ही घटना एक भारत के इतिहास में दर्ज है। जहां एक नेता ने गरीबों और मुसलमानों की जनसंख्या को कंट्रोल करने के लिए जबरन नसबंदी का अभियान चलाया। कहा जाता है, इस नेता के आदेश पर पुलिस मोहल्ले और गांवों को घेर-घेर कर लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करवाई। हम किस की बात कर रहे हैं, शायद आप समझ गए होंगे। जी हां, हम बात कर रहे हैं संजय गांधी। देश की तत्काल प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के बड़े बेटे संजय गांधी ने गरीबों को निशाना बनाया।
संजय गांधी ने करवाई 62 लाख लोगों की नसबंदी
संजय गांधी कें इस जनसंख्या नियंत्रण की नीति के तहत एक साल के भीतर लगभग 62 लाख लोगों की जबरन नसबंदी (Sterilisation In India) हुई और इस दौरान लगभग 2 हजार लोगों की मौत हुई। आपको बता दें कि भारत में जनसंख्या को कंट्रोल करने के लिए 1970 के दशक में परिवार नियोजन प्रोग्राम की शुरुआत हुई थी। वैसे संजय गांधी को राजनीति में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन मां इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनते ही वह उनके सलाहकार के तौर पर साथ रहने लगे और मनमाने तरीके से काम करने लगे थे। जिसके चलते कांग्रेस को काफी नुकसान झेलना पड़ा।
हिटलर ने करवाई थी 4 लाख लोगों की नसबंदी
आपको बता दें कि संजय गांधी ने ये इस घटना को अंजाम 1933 में जर्मनी में हिटलर (Hitler) के अभियान से प्रेरित था। दरअसल, हिटलर ने ऐसे लोगों को की नसबंदी करवानी शुरू की जो किसी हेरिटेडरी बीमारी यानी पूर्वजों से चली आ रही ही बीमारी से जूझ रहे थे। इसके पीछे उनका मानना था कि अगर इन लोगों के बेटे या बेटी ऐसे होंगे तो उनका देश अच्छी नस्ल का नहीं बन पाएगा और देश बीमारियों से मुक्त हो जाएगा। इस अभियान के तहत जर्मनी में 4 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी।
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