मायानगरी मुंबई का अपना इतिहास है। रंक से राजा और राजा से रंक बनने वालीं कहानियां यहां की फिजा में खूब बसर करती हैं। मायानगरी इतनी आसान होती तो बात ही क्या होती। सपनों की ये नगरी प्रतिभाशाली लोगों के धैर्य का खूब इम्तिहान लेती है। इस परीक्षा में जो सफल हो जाते हैं उनको ये शहर सिर आंखों पर बैठाता है और जो धैर्य के आगे हार मान लेते हैं वो करिश्माई पर्दे पर दिखने से पहले ही ओझल हो जाते हैं।
झारखंड के जमशेदपुर स्थित सोनारी की रहने वाली एक लड़की घर पर जब भी टीवी खोलती तो वो स्क्रीन पर खुद को पाती थी। ये उसका ख्वाब था जो वो दिन-रात बंद और खुली आंखों से देखा करती थी। परिवार को किसी तरह मनाकर वो लड़की फिल्म इंडस्ट्री पर छा जाने का ख्वाब अपनी आंखों में लिए मायानगरी मुंबई पहुंचती है और खुद से जंग जीतने निकल पड़ती है। उस लड़की का नाम था प्रत्युषा बनर्जी।
प्रत्युषा बनर्जी की दादी झरना बनर्जी उन्हें आगे पढ़ाना-लिखाना चाहती थीं, लेकिन प्रत्युषा तो बस हर रोज अपने सपनों की दुनिया को हकीकत में जीने की जद्दोजहद में लगी रहती। प्रत्युषा के एक्टर और प्रोडक्शन कंपनी के मालिक बॉयफ्रेंड राहुल राज सिंह को उनकी मौत की वजह माना गया था। प्रत्युषा और राहुल जमशेदपुर में अपने कॉमन फ्रेंड के जरिए मिले थे। दोनों की मुलाकात दोस्ती और फिर देखते ही देखते प्यार में बदल गई।