जम्मू और कश्मीर (Jammu Kashmir) में तनाव और डर बना हुआ है, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को राज्यसभा में आर्टिकल 370 हटाने के लिए प्रस्ताव रखा। बिल को इंट्रोड्यूस करने से पहले, कश्मीर के मुद्दे ने राज्यसभा में काफी हल्ला हुआ। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कश्मीर की वर्तमान स्थिति का मुद्दा उठाया है। पूरे कश्मीर में कर्फ्यू लगा हुआ है और कई जिलों में धारा 144 लागू है।
जम्मू-कश्मीर (Jammu And Kashmir Flag) में युद्ध जैसे हालात हैं। मोबाइल फोन और इंटरनेट सर्विस बंद है। राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री नजरबंद हैं। कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में कहा कि इस मुद्दे पर पहले चर्चा करनी चाहिए थी। इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) से मुलाकात की। जबसे आर्टिकल 370 (1) (D) राष्ट्रपति ऑर्डर के तहत आया है, तबसे राष्ट्रपति जम्मू और कश्मीर के फायदे के लिए संविधान के इस आर्टिकल में कुछ बदलाव कर सकते हैं।
क्या है आर्टिकल 370 जिसे सरकार हटाना या बदलना चाहती है-
भारत के संविधान के मुताबिक, आर्टिकल 370 जम्मू और कश्मीर को एक अस्थायी प्रोविजन देता है, जोकि इसे विशेष स्वायत्तता (ऑटोनॉमी) देता है।
आर्टिकल के मुताबिक, आर्टिकल 238 के प्रावधान जम्मू और कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होगा। इस आर्टिकल को 1956 में संविधान से हटाया गया था। इस आर्टिकल के तहत राज्यों का पुनर्गठन किया गया था।
1949 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला को संविधान में आर्टिकल 370 को शामिल किए जाने के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर (तत्कालीन कानून मंत्री) से परामर्श करने और ड्राफ्ट तैयार का निर्देश दिया था।
आर्टिकल 370 को गोपालस्वामी अयंगर ने ड्राफ्ट किया था। भारत की पहली केंद्रीय केबिनेट में अयंगर मंत्री थे लेकिन उनके पास कोई पोर्टफोलियों नहीं था। वह जम्मू और कश्मीर के महाराज हरि सिंह के पूर्व दीवान थे।
अनुच्छेद 370 को संविधान संशोधन के भाग XXI में टेंपरेरी और ट्रांजिशनल प्रोविजन के तहत ड्राफ्ट किया गया है।
आर्टिकल 370 के तहत भारतीय संसद राज्य की सीमा को घटा-बढ़ा नहीं सकता था।