मुंबई में पली बढ़ी माधुरी और फिल्मी लटके-झटकों से अंजान? ये कैसे हो सकता है. इसकी तो कल्पना भी बेमानी लगती है. तब तो और भी, जब परदे पर खुद माधुरी इसके हर कदम-ताल में परंगत दिखती है. मगर मुंबई की आम मिडिल क्लास फेमिली में पली-बढ़ी माधुरी अदाकारी के मायावी मुहावरे से कतई अलग थी. यूं कहें कि पूरी तरह अबोध.
साल 1984 में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म अबोध के लिए चुने जाने तक माधुरी अंजान थी- उनकी अदाओं में बात कोई खास है. 17 साल की अबोध के रूप में फिल्मी परदे पर वो एंट्री माधुरी के ग्लैमर को 32 बरस पीछे ले जाती है. यही वो अरसा है- जिसमें परदे पर एक हीरोइन पुनर्जन्म होता है. एक सहमी-संकोची अबोध बाला का कायाकल्प सिनेमा की एक संपूर्ण औरत के रूप में होता है. और वो रुप जब परदे पर रंग लाया, तब दुनिया के साथ खुद माधुरी भी बस देखती ही रह गई. शुरुआत की 9 फिल्मों की नाकामी के बाद अदाओं का वो तेजाबी असर सबका मन मोह लेने वाला था.
साल 1988 की बात है. सिनेमा की दुनिया में माधुरी की एंट्री के 4 साल बीत चुके थे. 9 फिल्में रिलीज हो चुकी थी. लेकिन फिल्म तेजाब के एक, दो, तीन गीत के साथ 9 फिल्मों में सहमी सी दिखने वाली ये हीरोइन जैसे अपनी इमेज तोड़ने को बेचैन दिख रही थी. नृत्य कौशल के साथ बिंदास भाव-भंगिमाओं का मेल ऐसा बेजोड़ कि डाइरेक्टर एन चंद्रा भी दंग रह गए. कोरियोग्राफर सरोज खान ने तो उसी दिन कह दिया था- ये लड़की आगे चलकर बॉलीवुड की सबसे बड़ी डांस डिवा बनेगी.